बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
स्टोइकवाद
स्टोइकवाद प्राचीन बुद्धिवाद का दूसरा रूप है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जीनो (Zeno) ने किया था। इस सिद्धान्त के प्रचार-प्रसार का श्रेय क्रीसिपस (Chrysippus) को दिया जाता है।
(1) इस वाद के सम्बन्ध में एक प्रश्न यह उठता है कि इस सिद्धान्त को स्टोइकवाद क्यों कहते हैं? इसके उत्तर के विषय में कहा जाता है कि जीनो अपने सिद्धान्त से सम्बन्धित भाषण जिस स्थान पर दिया करता था, उसे स्टोआ पोइकिले अर्थात् रंगीन बरसाती कहा जाता है। इसी कारण जीनो तथा इनके शिष्यों को स्टोइक कहा जाता था। इस सिद्धान्त के अनुसार, जीवन तथा बुद्धि परस्पर सम्बन्धित हैं। संकल्प तथा बुद्धि के अनुसार जीवन ही प्राकृतिक जीवन है।
(2) विश्व नागरिकतावाद का प्रतिपादन स्टोइकवाद ने विश्व नागरिकतावाद का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, सभी व्यक्ति मौलिक रूप से बौद्धिक हैं तथा इसी गुण के कारण व्यक्ति अन्य सभी प्राणी में प्रधान है। सभी व्यक्ति समान हैं। विश्व में न्याय का एक नियम ही लागू होता है।
सिद्धान्त का मूल्यांकन या आलोचना
इस सिद्धान्त को कठोर बुद्धिजीवी सिद्धान्त माना गया है तथा इस सिद्धान्त की कटु आलोचना की गई है। इसका प्रमुख कारण इसकी एकाँगी एवं कठोरवादी व्याख्या है। स्टोइकवाद साधारण ऐन्द्रिक सुखों से युक्त जीवन को नहीं मानता, यह भावना को मनुष्य के जीवन में कोई स्थान नहीं देता। इस कारण यह व्यावहारिक सिद्धान्तों की श्रेणी में नहीं आता है।
इस सिद्धान्त में उपरोक्त दोषों के अतिरिक्त कुछ विशेषताएँ भी हैं। यह सिद्धान्त अपने आप में कर्तव्य का नीतिशास्त्र है। इस सिद्धान्त में कर्तव्य को विशिष्ट स्थान दिया गया है। इस सिद्धान्त का प्रमुख गुण विश्व बन्धुत्व की भावना भी है। इसी कारण इस सिद्धान्त को उत्तम माना गया है।
स्टोइक का अर्थ भी यही होता है स्टोआ के लोग। इसी कारण इनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त को स्टोइकवाद कहा जाता है। इस सिद्धान्त की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-
(1) सुखवाद का विरोध - कठोर बुद्धिवादी सिद्धान्त के कारण स्टोइकवाद में सुखवाद की कटु आलोचना की गई है। स्टोइकवाद में सुख की लालसा को व्यर्थ एवं अनुचित माना गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार, विकार-शून्य वैरागी को साधु व्यक्ति माना गया है क्योंकि वैरागी व्यक्ति अपनी वासनाओं को त्यागकर बुद्धि को नियंत्रित रखते हैं।
(2) नैतिकता की व्यावहारिक व्याख्या - स्टोइकवाद में नैतिकता की व्यावहारिक व्याख्या प्रस्तुत की गयी। ज्ञान को व्यक्ति का प्रधान गुण माना गया तथा व्यक्ति के शुभ-अशुभ तथा उचित- अनुचित की व्याख्या इसी आधार पर की गई है। व्यक्ति उचित-अनुचित की व्याख्या अपने विवेक के आधार पर करता है। यही आदर्श जीवन है। प्रकृति के अनुसार, जीवन को ही शुभ, कल्याणकारी तथा आध्यात्मिक जीवन माना गया है।
(3) सद्गुण ही व्यक्ति के लिए परम शुभ है - बुद्धिवादी सिद्धान्त के अनुसार, व्यक्ति के लिए परम शुभ सद्गुण है। सिनिकवाद से भिन्न स्टोइकवाद में सद्गुणों की भावात्मक व्याख्या की गई है।
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